स्वागतम

"मेरे अंतर का ज्वार, जब कुछ वेग से उफ़न पड़ता है,
शोर जो मेरे उर में है,कागज पर बिखरने लगता है |"
ये अंतर्नाद मेरे विचारों की अभिव्यक्ति है, जिसे मैं यहाँ आपके समक्ष रख रहा हूँ |
साहित्य के क्षेत्र में मेरा ये प्रारंभिक कदम है, अपने टिप्पणियों से मेरा मार्ग दर्शन करें |

गुरुवार, 18 जून 2009

एक बाई-पीड़ित का पैगाम, शाइनी भैया के नाम


ये सब शाइनी भैया का ही चमत्कार है
दो दिन हुए मेरी बाई भी काम से फरार है |
बीबी घर में लाओगे तब ही मैं वहाँ आउंगी
बैचलर के लिए खाना अब मैं नहीं बनाऊँगी |

अब आईने में खुद को देख सोचा करता हूँ
मुझमें छुपे शाइनी को ढूँढा करता हूँ |
मेरी बाई अब मेरे घर आने को तैयार नहीं है
उसको मेरे चरित्र पर अब कोई ऐतबार नहीं है |

एक तो बाज़ार की मंदी, दूसरा बाई भी सताती है
सीधे-सीधे कहती नहीं पर चरित्रहीन बताती है |
अब इस मंदी के दौर में परेशानियों में डूबा हूँ
अब ऐसे समय बीबी लाने के सवालों में उलझा हूँ |