स्वागतम

"मेरे अंतर का ज्वार, जब कुछ वेग से उफ़न पड़ता है,
शोर जो मेरे उर में है,कागज पर बिखरने लगता है |"
ये अंतर्नाद मेरे विचारों की अभिव्यक्ति है, जिसे मैं यहाँ आपके समक्ष रख रहा हूँ |
साहित्य के क्षेत्र में मेरा ये प्रारंभिक कदम है, अपने टिप्पणियों से मेरा मार्ग दर्शन करें |

मंगलवार, 29 मार्च 2011

महामृत्युंजय मंत्र का शाब्दिक अर्थ

त्रयम्बक -तीन आँखोवाले जो संहारक हैं, महाकाल हैं, कैसे मृत्यु से मुक्त कर सकते हैं ? जब जब उनकी तीसरी आँख खुली है संहार हुआ है | फिर इस त्र्यम्बक की यजामह अर्थात आराधना क्यूँ?



आज शिवरात्रि है | भूतेश्वर भगवान शिव के लिंग रूप में प्रादुर्भाव की रात्रि | भुक्ति और मुक्ति का समायोजन की रात्रि | मन आह्लादितहै, व्रत-उपवास रखा है | "उपवास" अर्थात उप वास, अर्थात सानिध्य | शिव का सानिध्य का अवसर कैसे छोड़ सकता हूँ | सो उपवास किया है |
सुबह दैनिक क्रम में शिव का सानिध्य रहा | प्रातः मोबाइल का अलार्म महामृत्युंजय बजाया | अंतरात्मा शिव शिव हो गयी | फिर कंप्यूटर पर शिवमहिम्न स्तोत्रं और रावणकृत शिव तांडव स्तोत्रं का का पाठ एस० पि० बालासुब्रमण्यम की आवाज में सुना | सस्वर पाठ मैं भी करता रहा |
मगर जब स्वयं पूजा के लिए बैठा तो मन महामृत्युंजय मंत्र के भावार्थ पर जा अटका | मंत्र चिंतन भी एक पूजा है | बस लग गया भावार्थ ढूंढने में |
त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिम्पुष्टिवर्धनम्‌। उर्व्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योरमुक्षीय मामृतात्‌।
(भावार्थ-समस्त संसार के पालनहार तीन नेत्रों वाले शिव की हम आराधना करते हैं | विश्व में सुरभि फैलानेवाले भगवान शिव हमे मृत्यु ना की मोक्ष से हमें मुक्ति दिलायें)

इस मंत्र ने मुझे और मेरे विचारों को उद्वेलित कर दिया था | आखिर हिन्दी में जो भाव बताया गया है, इस की गहराई क्या है ?
त्रयम्बक -तीन आँखोवाले जो संहारक हैं, महाकाल हैं, कैसे मृत्यु से मुक्त कर सकते हैं ? जब जब उनकी तीसरी आँख खुली है संहार हुआ है | फिर इस त्र्यम्बक की यजामह अर्थात आराधना क्यूँ?
मृत्यु सत्य है, फिर इससे बचने के लिए, मृत्यु को अपने से दूर रखने का प्रयास क्यूँ? इसके लिए महाकाल की प्रार्थना क्यूँ? कहीं ये चापलूसी तो नहीं !!!??? गंभीर प्रश्न था जो मुझे उद्विग्न कर रहा था | फिर अचानक "हुई सहाय शारद मैं जाना" , पिताजी की कुछ बातें याद पड़ीं | आयुर्वेदिक चिकित्सक हैं, उनके द्वारा चिकित्सा के क्रम में कुछ चर्चाएँ भी होती थीं | उन्ही चर्चाओं के कुछ शब्द मेरे अन्तः मन से निकल पड़े और भावार्थ सूझ गया |
हमारे शरीर के तीन तत्व वात-पित्त-कफ का सामजस्य ही हमारे शरीर को स्वस्थ रखता है | यह आयुर्वेद का मत है | इनके असंतुलन होने पर शरीर में व्याधियां होती हैं | यही वात-पित्त और कफ हमारे शरीर के सुगन्धित धातुओं (रक्त, मांस और वीर्य) का पोषण और पुष्टि करते हैं | अगर ये धातु शरीर में पुष्ट हैं तो जरा-व्याधियां नहीं सताती |
मुझे अर्थ मिल गया था-
हम भगवान शिव की आराधना करते हैं , वो हमारे शरीर के तीनों तत्वों (वात-पित्त-कफ) के संतुलन से उत्पन्न सुगन्धित धातुओं(रक्त-माँस-वीर्य) की पुष्टि करें | जिससे हमें मृत्यु नहीं(मृत्यु सत्य है), बल्कि जरा-व्याधियों के भय से मुक्ति मिले |

रोज सुबह महामृत्युंजय मंत्र का जाप करता रहा | मगर कभी इसके भावार्थ पर नहीं सोचा | शिव की बाह्य प्रतिमा बना बस जाप करता रहा | मगर जब से इस गुह्य भाव को समझा है | ह्रदय शिव के सानिध्य में और जा रहा है | अपने शरीर में विद्यमान शिव को पहचान लिया है |
शिव के त्रिनेत्र हमेशा अधमुंदे दिखाए गए हैं | साम्य-सौम्य की प्रतिमूर्ति शिव जब रौद्र रूप धारण करते हैं तो त्रिनेत्र खुल जाते हैं | उनमे असंतुलन आ जाता है | फिर शिव संहारक बन शव की ढेर लगा देते हैं | अर्थात संसार का विनाश संभव हो जाता है | यही हाल शरीर का भी है, अगर वात-पित्त-कफ संतुलित हैं तो आप स्वस्थ हैं | अन्यथा इनके असंतुलन से व्याधियां आ सकती हैं और मृत्यु भी निश्चित है|
शिव जब शांत होते हैं तो काल कूट हलाहल का भी शमन कर लेते हैं | वही हाल इस शरीर रूपी शिव का भी है | जब स्वस्थ है, संतुलित है तो यह भी बाह्य विषाणुओं का शमन कर लेता है |
इस महाशिवरात्रि भगवान शिव से यही प्रार्थना है की समस्त मनुष्यों के शरीर में विद्यमान शिव की उर्जा को उर्ध्व गति दें | जिससे उनमें मृत्यु का भय समाप्त हो सके |

(दिल्ली, महाशिवरात्रि)

गुरुवार, 17 मार्च 2011

ये कैसा तांडव इस फाल्गुन में....

हे नटराज ! ये कैसा तांडव,

भंग के उमंग में

धरती डोली, सागर उफना

कुछ अलग तरंग में


चिलम कि तेरी आग बुझी तो

बडवानल बुला लिया

धूनी कि पड़ी राख कम तो

सारा शहर जला दिया


काम दमन करने वाले,

इस फाल्गुन में क्यूँ बौराये

कैलास का मंच क्या कम था

जो जापान में जा समाये


काल कूट को पीने वाले

क्या अब विष पचा ना पाए

क्या डगमगा गए तांडव में,

जो सुर ताल रचा ना पाए

~शशि(१७मार्च २०११)