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"मेरे अंतर का ज्वार, जब कुछ वेग से उफ़न पड़ता है,
शोर जो मेरे उर में है,कागज पर बिखरने लगता है |"
ये अंतर्नाद मेरे विचारों की अभिव्यक्ति है, जिसे मैं यहाँ आपके समक्ष रख रहा हूँ |
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रविवार, 8 मार्च 2009

होली की हार्दिक शुभकामनायें....



सजी हुई है रंगों की महफ़िल,सजा हुआ संसार है

मदमस्त

हो सब झूम रहे, चढा अजब खुमार है |

है यौवन मद में झूम रहा, आह्लादित हो घुम रहा ,

और फड़कती रगों से हर क्षण फ़ुट रहा झंकार है |

भंग की सरिता कहीं
बह रही, कहीं रंगों की फुहार है,

क्या राजा और क्या रंक , सब पर फाल्गुन की खुमार है |

कोंपल नए फूटे ठुन्ठो से, वृद्धों पे छाई तरुणाई है,

कामदेव की मधुर कल्पना से ये धरती आज नहायी है |

है ऋतुराज का साम्राज्य ऐसा हर कोई हुआ मलंग है,


देख दशा नव यौवन की स्वयं चितेरा दंग है |

है थाप कहीं पे ढोलक की, कहीं चंग और मृदंग है,

सब झूम रहे सब घूम रहे, हर तरफ यही रंग है |

हवा बेढंगी बह रही है , जैसे अल्हड तरुणाई है ,

कभी तेज़ तो कभी मंद, जैसे छाई अलसाई है |

है मेलजोल का पर्व, सभी रंग मिल आपस में कह रहे,

ना कोई राजा ना कोई रंक, सब एक रौ में बह रहे |