ना लगा सका गले मुझको, बन बैरी आघात तो कर
है कैसी अनोखी तेरी रचना, हर रंग उलझे उलझे
तू भी उलझ गया है, सुलझन की शुरुआत तो कर
उड़ रहा हूँ टूट कर शाख से, मैं सूखे पत्तों की तरह
सिंचित कर मृतप्राय जड़ों को, कभी बरसात तो कर
विपन्नता ने बना डाला, सहिष्णु और संतोषी मुझे
अब इस छोटी झोली में, कुछ खुशियाँ सौगात तो कर ~शशि