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"मेरे अंतर का ज्वार, जब कुछ वेग से उफ़न पड़ता है,
शोर जो मेरे उर में है,कागज पर बिखरने लगता है |"
ये अंतर्नाद मेरे विचारों की अभिव्यक्ति है, जिसे मैं यहाँ आपके समक्ष रख रहा हूँ |
साहित्य के क्षेत्र में मेरा ये प्रारंभिक कदम है, अपने टिप्पणियों से मेरा मार्ग दर्शन करें |

रविवार, 22 अगस्त 2010

विवेकानन्द के प्रति

जो भारत तुमने देखा था
अंतिम शिला पर खड़े होकर
आज हम कहीं अधिक देखते
अपने घरों में बैठकर

हम में भी है फौलाद हृदय
और उन्नत मस्तक
कह सकते हैं ज्ञान की बातें
गूगल से खोज अक्षरशः

हिंदुत्व की रक्षा करने को
आपके कदम बढे थे
आँखें खुली यथार्थ जाना
यहाँ दल और सेना खड़े थे

नेतृत्व तुम्हारा आज भी वंदित
पर फिर मत आना इस देश
पछताओगे, छटपटाओगे
देख नवभारत का भेष