स्वागतम

"मेरे अंतर का ज्वार, जब कुछ वेग से उफ़न पड़ता है,
शोर जो मेरे उर में है,कागज पर बिखरने लगता है |"
ये अंतर्नाद मेरे विचारों की अभिव्यक्ति है, जिसे मैं यहाँ आपके समक्ष रख रहा हूँ |
साहित्य के क्षेत्र में मेरा ये प्रारंभिक कदम है, अपने टिप्पणियों से मेरा मार्ग दर्शन करें |

शनिवार, 16 मई 2009

निर्झर बन जाने दे


होठों पर जो ठहरी हँसी, निर्झर बन जाने दे
कहकशां खामोश है, एक शैलाब आने दे |

उमस भरी पुरवाई भी चलती है थम-थम,
हिला दे सोये दरख्तों को बवंडर बन जाने दे |

इस वीराने में भी बसता था कभी कोई गुलिस्तां
कुरेद दे हर गर्द को वो मंजर को फ़िर छाने दे |

पुकारता है कहीं कोई पथिक, राह भूल गया ,
जला दे चाँद ज्यूँ, आफ़ताब से नहाने दे |

सोमवार, 4 मई 2009

चलो नदी के पार प्रिये



चलो
नदी के पार प्रिये
ले लहरों का आधार प्रिये

उतर जाए जब चांदनी
लहरों के आँचल में
और अठखेलियाँ लेता हो
अथाह जल पर चंद्र बिंब
छेड़ेंगे ह्रदय के तार प्रिये | चलो नदी के पार प्रिये...

राग भैरव के गायन तक
रश्मि-रथि के आवन तक
छेड़ेंगे हम राग मधुर
जो गुंजित हो लहरों के संग
मालकौंस और मल्हार प्रिये | चलो नदी के पार प्रिये...

चुने अपनें मन कुसुम को
और गुंथे अपने भावों को
करें आलिंगन परछाई भी
और हो जाए मन मतंग
डाल गले का हार प्रिये | चलो नदी के पार प्रिये...