चलो नदी के पार प्रिये
ले लहरों का आधार प्रिये
उतर जाए जब चांदनी
लहरों के आँचल में
और अठखेलियाँ लेता हो
अथाह जल पर चंद्र बिंब
छेड़ेंगे ह्रदय के तार प्रिये | चलो नदी के पार प्रिये...
राग भैरव के गायन तक
रश्मि-रथि के आवन तक
छेड़ेंगे हम राग मधुर
जो गुंजित हो लहरों के संग
मालकौंस और मल्हार प्रिये | चलो नदी के पार प्रिये...
रश्मि-रथि के आवन तक
छेड़ेंगे हम राग मधुर
जो गुंजित हो लहरों के संग
मालकौंस और मल्हार प्रिये | चलो नदी के पार प्रिये...
चुने अपनें मन कुसुम को
और गुंथे अपने भावों को
करें आलिंगन परछाई भी
और हो जाए मन मतंग
डाल गले का हार प्रिये | चलो नदी के पार प्रिये...
और गुंथे अपने भावों को
करें आलिंगन परछाई भी
और हो जाए मन मतंग
डाल गले का हार प्रिये | चलो नदी के पार प्रिये...
वाह। अच्छी रचना है। बधाई।
जवाब देंहटाएंसादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com
shabdon ka chayan achha hai
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर…..आपके इस सुंदर से चिटठे के साथ आपका ब्लाग जगत में स्वागत है…..आशा है , आप अपनी प्रतिभा से हिन्दी चिटठा जगत को समृद्ध करने और हिन्दी पाठको को ज्ञान बांटने के साथ साथ खुद भी सफलता प्राप्त करेंगे …..हमारी शुभकामनाएं आपके साथ हैं।
जवाब देंहटाएंआप की रचना प्रशंसा के योग्य है . लिखते रहिये
जवाब देंहटाएंचिटठा जगत मैं आप का स्वागत है
गार्गी
रमणीय काव्य ..शुभ कामनाएं
जवाब देंहटाएंBahut sundar rachna. Shashi ji iske liye aapko dheron shubhkaamnayen.
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