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"मेरे अंतर का ज्वार, जब कुछ वेग से उफ़न पड़ता है,
शोर जो मेरे उर में है,कागज पर बिखरने लगता है |"
ये अंतर्नाद मेरे विचारों की अभिव्यक्ति है, जिसे मैं यहाँ आपके समक्ष रख रहा हूँ |
साहित्य के क्षेत्र में मेरा ये प्रारंभिक कदम है, अपने टिप्पणियों से मेरा मार्ग दर्शन करें |

शनिवार, 4 सितंबर 2010

गुरु वंदना



गुरु आज शरण हम तेरे
अज्ञान तिमिर हमें घेरे
तेरी कृपा जो हो जाये
होंगे ये दूर अँधेरे .
गुरु....

मैं देव अन्य ना जानूं
मैं धर्म और ना मानू
कर गहकर करूँ प्रार्थना
तुम सर्वस्व हो मेरे.
गुरु...

अक्षर दीप जला दो
मन पंगु को चला दो
भवबंधन से दो मुक्ति
जीवन मरण के फेरे
गुरु...

संताप ह्रदय के मिटा दो
आशीष हमपे आज लुटा दो
गढ़ दो जीवन सरल-सुखद
तुम हो कुशल चितेरे
गुरु...

कर्म भक्ति



बहुत हो गयी कृष्ण भक्ति
पा गए हम राधा कि शक्ति
पर कर्मयोग कि है ये सूक्ति
कर्म करोगे, पाओगे मुक्ति ~शशि