स्वागतम

"मेरे अंतर का ज्वार, जब कुछ वेग से उफ़न पड़ता है,
शोर जो मेरे उर में है,कागज पर बिखरने लगता है |"
ये अंतर्नाद मेरे विचारों की अभिव्यक्ति है, जिसे मैं यहाँ आपके समक्ष रख रहा हूँ |
साहित्य के क्षेत्र में मेरा ये प्रारंभिक कदम है, अपने टिप्पणियों से मेरा मार्ग दर्शन करें |

मंगलवार, 2 सितंबर 2008

आखिरी ख़त...

तेरे आखिरी ख़त के आखिरी पन्ने में कुछ इकरार लिखा है,

बिछुड़ रहे हो तुम मुझसे और ज़माने भर का प्यार लिखा है

हर शब्द में पिरोया है तुमने, दिले जज्बात की धड़कन,

और बिखरते अक्षरों में तुम्हारे आसुओं का आयाम लिखा है

बनाया था हमने कभी एक आशियाँ ख्वाबों के जहाँ में,

तुमने उस आशियाने में गुजरे हर सुबह - शाम लिखा है

जला करते थे जिस इश्क की आग में हम मद्धम- मद्धम,

तुमने उस असह्य तपिश को आराम लिखा है

पारस तन, पत्थर जीवन ...


मैं अब लहरों में बहता हूँ,
मैं अपने जीवन की कहता हूँ

पर्वत था मैं स्थिर खडा
वक़्त की आधी में टूट पड़ा,
देखे जीवन के हरेक रंग
अपनी अनुभूति कहता हूँमैं अब ....

मैं लहरों से लड़ता हूँ
खुद से टकराकर टूटता हूँ,
जड़ था कभी इस जग में
आज लहरों संग बहता हूँमैं अब ....

ऊँची-नीची लहरों के संग
जीवन अपना बना मलंग,
और लहरों के थपेडों को
मैं चुपके-चुपके सहता हूँमैं अब ....

मग गाथा



दोस्तों मेरे कुछ घनिष्ठ मित्रों की राय थी की कुछ अपने कम्युनिटी के लिए लिखु अब अपने इतिहास से अच्छा विषय क्या होता, चन्द पंक्तियाँ अपने सुनहरे इतिहास के नाम लिखी हैंआप पढें और अपनी राय दे




मग ब्राहमणों की दिव्या गाथा का प्रस्तुत है ये प्रमाण,
ज्ञानपिपासु बनकर पढें और बढाएं अपना आत्म ज्ञान

अगर कहीं कुछ त्रुटी है तो संकेत अवश्य बतलायें,
साग्रह विनय है, आप और ज्ञान प्रकाश फैलायें

मगों की भारत में उत्पति का प्रत्यक्ष भविष्यपुराण है,
गुप्तकाल के शिलालेखों में भी ये जड़ित प्रमाण है

बात है उस काल की जब महाभारत का अंत हुआ,
द्वापरयुग के मध्यकाल में ये युद्ध प्रचंड हुआ

द्वारकाधीश के पुत्र साम्ब कुष्ठ रोग से ग्रसित हुए,
अंग-विकार सुन पुत्र का श्रीकृष्ण विचलित हुए

की बहुत उपाय मगर हर चिकित्सक व्यर्थ हुए,
जगके पालनहार कृष्ण बहुत ही विचलित हुए

व्यथित ह्रदय से तब उन्होने एक बृहत् मंत्रणा बुलवाया,
राज़ चिकित्सकों और ज्योतिषियों ने उपाय एक ही बतलाया

उत्तर-पश्चिम सुदूर प्रान्त के ब्रह्मण इस विद्या में भारी हैं,
पूजक हैं वो सूर्यदेव के वो ही इस चिकित्सा के अधिकारी हैं

ये ब्रह्मण अत्यंत तेज़ और दिव्य-शक्तियों वाले हैं,
तंत्र-ज्योतिष और आयुर्वेद में इनके ज्ञान निराले हैं

अठारह कुल के ब्राहमणों को श्री कृष्ण खुद लेकर आये ,
धन्य पक्षिराज गरुड़ जो इस कार्य निहित बनकर आये

की चिकित्सा साम्ब की मगों ने, साम्ब ने स्वास्थय लाभ किया,
प्रसन्न होकर श्री कृष्ण ने अठारह प्रांतों का दान किया

मित्रवान प्रान्त जो वर्तमान में मुल्तान विद्यमान है,
स्थापित सूर्य मंदिर मगों का यह भी एक प्रमाण है

है उपस्थित चंद्रभागा* भी आज भी कल कल बहती है,
मग ब्राहमणों की दिव्या गाथा को अपनी जुबानी कहती है
(चंद्रभागा उडीशा की प्रमुख नदी है, कोणार्क सूर्य मंदिर इसी के तट पर है)

सातवीं शताब्दी में जब ह्युएँ -सांग भारत आया था,
अपने लेखों में सूर्य मंदिरों का होना बतलाया था

ये मग और कोई नहीं जोरोरोस्टर के अनुयायी हैं,
सूर्य और अग्नि की पूजा दोनों शाखाओं ने पाई है

ईरान प्रान्त का पर्शिया में जोरोरोस्टर की उत्पत्ति है,
मग थे इनके पुजारी ये विद्वानों की भी मति है

यीशु के जन्म पर भी पूर्व से तीन मगों का आगमन है,
यकीं न आये तो पढ़ लें, बाइबल का ये कथन है (matt,2:1)

'म' अर्थात सूर्य का किया गन तो मग बन पाए ,
अर्पण किया नैवेद्य सूर्य को तो ये भिजक कहलाये

वेद विदित है ये मग आदि ऋषियों की संतान हैं,
गोत्र इन ब्राहमणों के इन्हीं ऋषियों के नाम हैं

ये गोत्र कुल अठ्ठारह हैं जो आदि ऋषियों के नाम हैं,
महाभारत कल हुयी इनकी स्थापना इसका प्रमाण है

शोधपत्रों को देखें तो मग सिंध नदी से भारत आये,
यहाँ उत्तर भारत के अनेक प्रांतों में अपना बसेरा बनाये

बिहार, राजस्थान, बंगाल इत्यादी इनके गढ़ हुए,
मग से बना मगध जिसके गुप्तवंशज शासक हुए

ये ब्राह्मण इन्ही क्षेत्रों में आज भी विद्यमान हैं,
क्श्रेष्ठतम क्षेत्रों में इनका उच्चतम सम्मान है

ये संक्षिप्त विवरण मगों की विशिष्टता पर प्रकाश है,
ज्ञान-पिपासु लाभान्वित होंगे ऐसा मेरा विश्वास है

यह लघु निबंध पद्य रूप में आपको साग्रह है,
त्रुटी संशोधन के लिए संकेत पुनः आग्रह है

साग्रह - शशि रंजन मिश्रा "चाँद"

मैं भी कवि हूँ


जुमलों को मिलाना गर कविताई है, तो मैं भी कवि हूँ ,
जमीं से जुड़ा हूँ मैं,और अपने पुरखों की छवि हूँ |
बंधू मेरी कविताई की बीमारी ये खानदानी है ,
वंशागत त्रुटी है ये , मर्ज़ बहुत पुरानी है|
वादा है यहाँ भी कुछ छाप मैं जरूर छोडूंगा,
आपके मन पे अपने दाग लगाकर छोडूंगा|
अब आप प्यार दो या दो दुत्कार मुझे
बस अपने दिल के भाव खरी खरी रखूँगा| -शशि