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"मेरे अंतर का ज्वार, जब कुछ वेग से उफ़न पड़ता है,
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ये अंतर्नाद मेरे विचारों की अभिव्यक्ति है, जिसे मैं यहाँ आपके समक्ष रख रहा हूँ |
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मंगलवार, 2 सितंबर 2008

आखिरी ख़त...

तेरे आखिरी ख़त के आखिरी पन्ने में कुछ इकरार लिखा है,

बिछुड़ रहे हो तुम मुझसे और ज़माने भर का प्यार लिखा है

हर शब्द में पिरोया है तुमने, दिले जज्बात की धड़कन,

और बिखरते अक्षरों में तुम्हारे आसुओं का आयाम लिखा है

बनाया था हमने कभी एक आशियाँ ख्वाबों के जहाँ में,

तुमने उस आशियाने में गुजरे हर सुबह - शाम लिखा है

जला करते थे जिस इश्क की आग में हम मद्धम- मद्धम,

तुमने उस असह्य तपिश को आराम लिखा है

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