फिल्म Bombay के दृश्यों को देखने के बाद कवि हृदय
मचल उठा और ये बानगी कागज़ पर उतरती चली गयी.....)
है शहर खामोश बहुत ही, जरूर कहीं कुछ बात हुई है,
सन्नाटे का है शोर चारों तरफ, क्या अज़ब हालात हुई है |
वीराने बस रहे हैं माय्खानो में, कसक जज्बात हुई है,
और टूटकर बिखरे पैमानों में, दर्दे आह हुई है |
जो भटकते थे कूचों* में दिलेजाना के कभी,
आज क्यूँ उनमे खूने-वह्शियत सवारन हुई है |
जिन झरोखों में परियां कभी दिख जाती थीं,
देखा हर कांच हर कड़ी तबाह हुई है |
है ज़हर ये कैसा सिर्फ वीराने जी रहे हैं,
इंसानियत बदल गयी, कैसी तिलस्मात हुई है |
मचल उठा और ये बानगी कागज़ पर उतरती चली गयी.....)
है शहर खामोश बहुत ही, जरूर कहीं कुछ बात हुई है,
सन्नाटे का है शोर चारों तरफ, क्या अज़ब हालात हुई है |
वीराने बस रहे हैं माय्खानो में, कसक जज्बात हुई है,
और टूटकर बिखरे पैमानों में, दर्दे आह हुई है |
जो भटकते थे कूचों* में दिलेजाना के कभी,
आज क्यूँ उनमे खूने-वह्शियत सवारन हुई है |
जिन झरोखों में परियां कभी दिख जाती थीं,
देखा हर कांच हर कड़ी तबाह हुई है |
है ज़हर ये कैसा सिर्फ वीराने जी रहे हैं,
इंसानियत बदल गयी, कैसी तिलस्मात हुई है |
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें