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"मेरे अंतर का ज्वार, जब कुछ वेग से उफ़न पड़ता है,
शोर जो मेरे उर में है,कागज पर बिखरने लगता है |"
ये अंतर्नाद मेरे विचारों की अभिव्यक्ति है, जिसे मैं यहाँ आपके समक्ष रख रहा हूँ |
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बुधवार, 3 सितंबर 2008

अहसास

फूलों को मुस्कुराने दो
कलियों को खिलखिलाने दो
मुझे तो है बस काँटों से वास्ता
जिनकी चुभन मुझे देती हैं
अहसास फूलों की कोमलता का
उनकी चपलता का
मेरे शरीर से टपकते लहू
बोध कराते हैं मुझे
सुर्ख गुलाब का
मेरी आहों से लगता है
जैसे फूल मुझपे हँसे हों
मेरी बेबसियों पे उनके
ये कहकहे हों
मुझे प्यारी लगती है काँटों की चुभन
जो अंतर-हृदय को सहलाते हैं
मुझे
अपनेपन का अहसास दिलाते हैं.

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