फूलों को मुस्कुराने दो
कलियों को खिलखिलाने दो
मुझे तो है बस काँटों से वास्ता
जिनकी चुभन मुझे देती हैं
अहसास फूलों की कोमलता का
उनकी चपलता का
मेरे शरीर से टपकते लहू
बोध कराते हैं मुझे
सुर्ख गुलाब का
मेरी आहों से लगता है
जैसे फूल मुझपे हँसे हों
मेरी बेबसियों पे उनके
ये कहकहे हों
मुझे प्यारी लगती है काँटों की चुभन
जो अंतर-हृदय को सहलाते हैं
मुझे
अपनेपन का अहसास दिलाते हैं.
कलियों को खिलखिलाने दो
मुझे तो है बस काँटों से वास्ता
जिनकी चुभन मुझे देती हैं
अहसास फूलों की कोमलता का
उनकी चपलता का
मेरे शरीर से टपकते लहू
बोध कराते हैं मुझे
सुर्ख गुलाब का
मेरी आहों से लगता है
जैसे फूल मुझपे हँसे हों
मेरी बेबसियों पे उनके
ये कहकहे हों
मुझे प्यारी लगती है काँटों की चुभन
जो अंतर-हृदय को सहलाते हैं
मुझे
अपनेपन का अहसास दिलाते हैं.
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