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"मेरे अंतर का ज्वार, जब कुछ वेग से उफ़न पड़ता है,
शोर जो मेरे उर में है,कागज पर बिखरने लगता है |"
ये अंतर्नाद मेरे विचारों की अभिव्यक्ति है, जिसे मैं यहाँ आपके समक्ष रख रहा हूँ |
साहित्य के क्षेत्र में मेरा ये प्रारंभिक कदम है, अपने टिप्पणियों से मेरा मार्ग दर्शन करें |

रविवार, 2 नवंबर 2008

आवाज़ तुम देना

एक गीत मैं लिखूंगा
आवाज़ तुम देना,
मैं रागों को सजाऊँ
साज़ तुम देना एक ....

जोडेंगे टुकड़े -टुकड़े
हम आज अपने मन के ,
गुन्थेंगे एक सुर में
हर भाव जीवन के
ना हो कभी ख़तम जो
वो शाम तुम देना एक ...

अगर हो जायेंगे मदमस्त
थाम लेना मेरी बाहें,
गर हम भटक गए तो
सुलझाना मेरी राहें ,
तुम अमृत-घट से उंडेल
जाम मुझको देना एक ...

हम मन के नाव खेवें
भावों के इस लहर में ,
हर फिक्र को डुबो दे
यादों के भंवर में
हमें ले जाये जो किनारे
वो मझधार तुम देना एक ...