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"मेरे अंतर का ज्वार, जब कुछ वेग से उफ़न पड़ता है,
शोर जो मेरे उर में है,कागज पर बिखरने लगता है |"
ये अंतर्नाद मेरे विचारों की अभिव्यक्ति है, जिसे मैं यहाँ आपके समक्ष रख रहा हूँ |
साहित्य के क्षेत्र में मेरा ये प्रारंभिक कदम है, अपने टिप्पणियों से मेरा मार्ग दर्शन करें |

शुक्रवार, 19 सितंबर 2008

अंतर-नाद


इक तान सुना दे मनमीता जो कलुष मन के धो दे ,
बिखरा पड़ा है जीवन मेरा जो एक सूत में उसे पिरो दे
बस एक तान सुना दे मुझको जो झंकृत कर दे मन को ,
मनमीत बहा दे निश्चल प्रेम और निर्मल कर मेरे जीवन को
मेरे मन के ढीले तारों को आज नीज हाथों से तू कस दे,
छेड़ दे ऐसी राग मधुर शायद आज हम फिर से हँस दे
आज मेरी टूटती साँसों में, अपनी ही सांस अमर भर दे,
नासूर बन गए घाव जीवन के तू बस छूकर मरहम कर दे