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"मेरे अंतर का ज्वार, जब कुछ वेग से उफ़न पड़ता है,
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ये अंतर्नाद मेरे विचारों की अभिव्यक्ति है, जिसे मैं यहाँ आपके समक्ष रख रहा हूँ |
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मंगलवार, 2 सितंबर 2008

पारस तन, पत्थर जीवन ...


मैं अब लहरों में बहता हूँ,
मैं अपने जीवन की कहता हूँ

पर्वत था मैं स्थिर खडा
वक़्त की आधी में टूट पड़ा,
देखे जीवन के हरेक रंग
अपनी अनुभूति कहता हूँमैं अब ....

मैं लहरों से लड़ता हूँ
खुद से टकराकर टूटता हूँ,
जड़ था कभी इस जग में
आज लहरों संग बहता हूँमैं अब ....

ऊँची-नीची लहरों के संग
जीवन अपना बना मलंग,
और लहरों के थपेडों को
मैं चुपके-चुपके सहता हूँमैं अब ....

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