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"मेरे अंतर का ज्वार, जब कुछ वेग से उफ़न पड़ता है,
शोर जो मेरे उर में है,कागज पर बिखरने लगता है |"
ये अंतर्नाद मेरे विचारों की अभिव्यक्ति है, जिसे मैं यहाँ आपके समक्ष रख रहा हूँ |
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मंगलवार, 2 सितंबर 2008

मैं भी कवि हूँ


जुमलों को मिलाना गर कविताई है, तो मैं भी कवि हूँ ,
जमीं से जुड़ा हूँ मैं,और अपने पुरखों की छवि हूँ |
बंधू मेरी कविताई की बीमारी ये खानदानी है ,
वंशागत त्रुटी है ये , मर्ज़ बहुत पुरानी है|
वादा है यहाँ भी कुछ छाप मैं जरूर छोडूंगा,
आपके मन पे अपने दाग लगाकर छोडूंगा|
अब आप प्यार दो या दो दुत्कार मुझे
बस अपने दिल के भाव खरी खरी रखूँगा| -शशि

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