ना लगा सका गले मुझको, बन बैरी आघात तो कर
है कैसी अनोखी तेरी रचना, हर रंग उलझे उलझे
तू भी उलझ गया है, सुलझन की शुरुआत तो कर
उड़ रहा हूँ टूट कर शाख से, मैं सूखे पत्तों की तरह
सिंचित कर मृतप्राय जड़ों को, कभी बरसात तो कर
विपन्नता ने बना डाला, सहिष्णु और संतोषी मुझे
अब इस छोटी झोली में, कुछ खुशियाँ सौगात तो कर ~शशि
उड़ रहा हूं टूट कर शाख से, मैं सूखे पत्तों की तरह,
जवाब देंहटाएंसिंचित कर मृतप्राय जड़ों को, कभी बरसात तो कर
बहुत ही सुन्दर लेखन ।
भावपूर्ण व मार्मिक चित्रण किया है भाई आपने ."
जवाब देंहटाएंआर्जियाँ सारी मै चेहरे पर लिख के लाया हुँ तुम्से क्या मांगू तुम खुद ही समझ लो मौला
दरारे दरारे माथे पे मौला मरम्मत मुक़द्दर की कर दो मेरे मौला "
शशी जी बहुत बढ़िया .... सुंदर
जवाब देंहटाएंबेशक कुच्छ वक्त का इंतज़ार मिला हमको, पर खुदा से बढ़कर यार मिला हमको...
bhaavpurna rachna !
जवाब देंहटाएंregards,
Hello Sir,
जवाब देंहटाएंbahut badiya likha h sir