स्वागतम
शोर जो मेरे उर में है,कागज पर बिखरने लगता है |"
ये अंतर्नाद मेरे विचारों की अभिव्यक्ति है, जिसे मैं यहाँ आपके समक्ष रख रहा हूँ |
शनिवार, 2 अप्रैल 2011
धोनी भयंकर
धोनी भयंकर, धोनी भयंकर
हमरे ...
धोनी भयंकर, धोनी भयंकर
धोनी ने धोया लंका को जमकर
धोनी भयंकर...
धोनी के धुरंधर सचिन तेंदुलकर
हरभजन का दूसरा, जहीर का योर्कर
युवराज तो ऐसे जैसे कलंदर
धोनी भयंकर, धोनी भयंकर
हमरे ...
धोनी भयंकर, धोनी भयंकर
गोरों* को धोया
हरामखोरों** को धोया
चोरों*** को पीटा मैदान में जमकर
धोनी भयंकर, धोनी भयंकर
हमरे ...
धोनी भयंकर, धोनी भयंकर
(* गोरों- आस्ट्रेलिया,
** हरामखोरों-पाकिस्तान,
*** चोरों- सीता माता को चुरानेवाले रावण के वंशज)
मंगलवार, 29 मार्च 2011
महामृत्युंजय मंत्र का शाब्दिक अर्थ
त्रयम्बक -तीन आँखोवाले जो संहारक हैं, महाकाल हैं, कैसे मृत्यु से मुक्त कर सकते हैं ? जब जब उनकी तीसरी आँख खुली है संहार हुआ है | फिर इस त्र्यम्बक की यजामह अर्थात आराधना क्यूँ?
आज शिवरात्रि है | भूतेश्वर भगवान शिव के लिंग रूप में प्रादुर्भाव की रात्रि | भुक्ति और मुक्ति का समायोजन की रात्रि | मन आह्लादितहै, व्रत-उपवास रखा है | "उपवास" अर्थात उप वास, अर्थात सानिध्य | शिव का सानिध्य का अवसर कैसे छोड़ सकता हूँ | सो उपवास किया है |
सुबह दैनिक क्रम में शिव का सानिध्य रहा | प्रातः मोबाइल का अलार्म महामृत्युंजय बजाया | अंतरात्मा शिव शिव हो गयी | फिर कंप्यूटर पर शिवमहिम्न स्तोत्रं और रावणकृत शिव तांडव स्तोत्रं का का पाठ एस० पि० बालासुब्रमण्यम की आवाज में सुना | सस्वर पाठ मैं भी करता रहा |
मगर जब स्वयं पूजा के लिए बैठा तो मन महामृत्युंजय मंत्र के भावार्थ पर जा अटका | मंत्र चिंतन भी एक पूजा है | बस लग गया भावार्थ ढूंढने में |
त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिम्पुष्टिवर्धनम्। उर्व्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योरमुक्षीय मामृतात्।
(भावार्थ-समस्त संसार के पालनहार तीन नेत्रों वाले शिव की हम आराधना करते हैं | विश्व में सुरभि फैलानेवाले भगवान शिव हमे मृत्यु ना की मोक्ष से हमें मुक्ति दिलायें)
इस मंत्र ने मुझे और मेरे विचारों को उद्वेलित कर दिया था | आखिर हिन्दी में जो भाव बताया गया है, इस की गहराई क्या है ?
त्रयम्बक -तीन आँखोवाले जो संहारक हैं, महाकाल हैं, कैसे मृत्यु से मुक्त कर सकते हैं ? जब जब उनकी तीसरी आँख खुली है संहार हुआ है | फिर इस त्र्यम्बक की यजामह अर्थात आराधना क्यूँ?
मृत्यु सत्य है, फिर इससे बचने के लिए, मृत्यु को अपने से दूर रखने का प्रयास क्यूँ? इसके लिए महाकाल की प्रार्थना क्यूँ? कहीं ये चापलूसी तो नहीं !!!??? गंभीर प्रश्न था जो मुझे उद्विग्न कर रहा था | फिर अचानक "हुई सहाय शारद मैं जाना" , पिताजी की कुछ बातें याद पड़ीं | आयुर्वेदिक चिकित्सक हैं, उनके द्वारा चिकित्सा के क्रम में कुछ चर्चाएँ भी होती थीं | उन्ही चर्चाओं के कुछ शब्द मेरे अन्तः मन से निकल पड़े और भावार्थ सूझ गया |
हमारे शरीर के तीन तत्व वात-पित्त-कफ का सामजस्य ही हमारे शरीर को स्वस्थ रखता है | यह आयुर्वेद का मत है | इनके असंतुलन होने पर शरीर में व्याधियां होती हैं | यही वात-पित्त और कफ हमारे शरीर के सुगन्धित धातुओं (रक्त, मांस और वीर्य) का पोषण और पुष्टि करते हैं | अगर ये धातु शरीर में पुष्ट हैं तो जरा-व्याधियां नहीं सताती |
मुझे अर्थ मिल गया था-
हम भगवान शिव की आराधना करते हैं , वो हमारे शरीर के तीनों तत्वों (वात-पित्त-कफ) के संतुलन से उत्पन्न सुगन्धित धातुओं(रक्त-माँस-वीर्य) की पुष्टि करें | जिससे हमें मृत्यु नहीं(मृत्यु सत्य है), बल्कि जरा-व्याधियों के भय से मुक्ति मिले |
रोज सुबह महामृत्युंजय मंत्र का जाप करता रहा | मगर कभी इसके भावार्थ पर नहीं सोचा | शिव की बाह्य प्रतिमा बना बस जाप करता रहा | मगर जब से इस गुह्य भाव को समझा है | ह्रदय शिव के सानिध्य में और जा रहा है | अपने शरीर में विद्यमान शिव को पहचान लिया है |
शिव के त्रिनेत्र हमेशा अधमुंदे दिखाए गए हैं | साम्य-सौम्य की प्रतिमूर्ति शिव जब रौद्र रूप धारण करते हैं तो त्रिनेत्र खुल जाते हैं | उनमे असंतुलन आ जाता है | फिर शिव संहारक बन शव की ढेर लगा देते हैं | अर्थात संसार का विनाश संभव हो जाता है | यही हाल शरीर का भी है, अगर वात-पित्त-कफ संतुलित हैं तो आप स्वस्थ हैं | अन्यथा इनके असंतुलन से व्याधियां आ सकती हैं और मृत्यु भी निश्चित है|
शिव जब शांत होते हैं तो काल कूट हलाहल का भी शमन कर लेते हैं | वही हाल इस शरीर रूपी शिव का भी है | जब स्वस्थ है, संतुलित है तो यह भी बाह्य विषाणुओं का शमन कर लेता है |
इस महाशिवरात्रि भगवान शिव से यही प्रार्थना है की समस्त मनुष्यों के शरीर में विद्यमान शिव की उर्जा को उर्ध्व गति दें | जिससे उनमें मृत्यु का भय समाप्त हो सके |
(दिल्ली, महाशिवरात्रि)
मगर जब स्वयं पूजा के लिए बैठा तो मन महामृत्युंजय मंत्र के भावार्थ पर जा अटका | मंत्र चिंतन भी एक पूजा है | बस लग गया भावार्थ ढूंढने में |
त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिम्पुष्टिवर्धनम्। उर्व्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योरमुक्षीय मामृतात्।
(भावार्थ-समस्त संसार के पालनहार तीन नेत्रों वाले शिव की हम आराधना करते हैं | विश्व में सुरभि फैलानेवाले भगवान शिव हमे मृत्यु ना की मोक्ष से हमें मुक्ति दिलायें)
इस मंत्र ने मुझे और मेरे विचारों को उद्वेलित कर दिया था | आखिर हिन्दी में जो भाव बताया गया है, इस की गहराई क्या है ?
त्रयम्बक -तीन आँखोवाले जो संहारक हैं, महाकाल हैं, कैसे मृत्यु से मुक्त कर सकते हैं ? जब जब उनकी तीसरी आँख खुली है संहार हुआ है | फिर इस त्र्यम्बक की यजामह अर्थात आराधना क्यूँ?
मृत्यु सत्य है, फिर इससे बचने के लिए, मृत्यु को अपने से दूर रखने का प्रयास क्यूँ? इसके लिए महाकाल की प्रार्थना क्यूँ? कहीं ये चापलूसी तो नहीं !!!??? गंभीर प्रश्न था जो मुझे उद्विग्न कर रहा था | फिर अचानक "हुई सहाय शारद मैं जाना" , पिताजी की कुछ बातें याद पड़ीं | आयुर्वेदिक चिकित्सक हैं, उनके द्वारा चिकित्सा के क्रम में कुछ चर्चाएँ भी होती थीं | उन्ही चर्चाओं के कुछ शब्द मेरे अन्तः मन से निकल पड़े और भावार्थ सूझ गया |
हमारे शरीर के तीन तत्व वात-पित्त-कफ का सामजस्य ही हमारे शरीर को स्वस्थ रखता है | यह आयुर्वेद का मत है | इनके असंतुलन होने पर शरीर में व्याधियां होती हैं | यही वात-पित्त और कफ हमारे शरीर के सुगन्धित धातुओं (रक्त, मांस और वीर्य) का पोषण और पुष्टि करते हैं | अगर ये धातु शरीर में पुष्ट हैं तो जरा-व्याधियां नहीं सताती |
मुझे अर्थ मिल गया था-
हम भगवान शिव की आराधना करते हैं , वो हमारे शरीर के तीनों तत्वों (वात-पित्त-कफ) के संतुलन से उत्पन्न सुगन्धित धातुओं(रक्त-माँस-वीर्य) की पुष्टि करें | जिससे हमें मृत्यु नहीं(मृत्यु सत्य है), बल्कि जरा-व्याधियों के भय से मुक्ति मिले |
रोज सुबह महामृत्युंजय मंत्र का जाप करता रहा | मगर कभी इसके भावार्थ पर नहीं सोचा | शिव की बाह्य प्रतिमा बना बस जाप करता रहा | मगर जब से इस गुह्य भाव को समझा है | ह्रदय शिव के सानिध्य में और जा रहा है | अपने शरीर में विद्यमान शिव को पहचान लिया है |
शिव के त्रिनेत्र हमेशा अधमुंदे दिखाए गए हैं | साम्य-सौम्य की प्रतिमूर्ति शिव जब रौद्र रूप धारण करते हैं तो त्रिनेत्र खुल जाते हैं | उनमे असंतुलन आ जाता है | फिर शिव संहारक बन शव की ढेर लगा देते हैं | अर्थात संसार का विनाश संभव हो जाता है | यही हाल शरीर का भी है, अगर वात-पित्त-कफ संतुलित हैं तो आप स्वस्थ हैं | अन्यथा इनके असंतुलन से व्याधियां आ सकती हैं और मृत्यु भी निश्चित है|
शिव जब शांत होते हैं तो काल कूट हलाहल का भी शमन कर लेते हैं | वही हाल इस शरीर रूपी शिव का भी है | जब स्वस्थ है, संतुलित है तो यह भी बाह्य विषाणुओं का शमन कर लेता है |
इस महाशिवरात्रि भगवान शिव से यही प्रार्थना है की समस्त मनुष्यों के शरीर में विद्यमान शिव की उर्जा को उर्ध्व गति दें | जिससे उनमें मृत्यु का भय समाप्त हो सके |
गुरुवार, 17 मार्च 2011
ये कैसा तांडव इस फाल्गुन में....
हे नटराज ! ये कैसा तांडव,
भंग के उमंग में
धरती डोली, सागर उफना
कुछ अलग तरंग में
चिलम कि तेरी आग बुझी तो
बडवानल बुला लिया
धूनी कि पड़ी राख कम तो
सारा शहर जला दिया
काम दमन करने वाले,
इस फाल्गुन में क्यूँ बौराये
कैलास का मंच क्या कम था
जो जापान में जा समाये
काल कूट को पीने वाले
क्या अब विष पचा ना पाए
क्या डगमगा गए तांडव में,
जो सुर ताल रचा ना पाए
~शशि(१७मार्च २०११)
गुरुवार, 24 फ़रवरी 2011
कुत्ते हैं आवाम का
इस कविता/व्यंग्य का भाव दोपायों के लिए है | चौपायों से क्षमाप्रार्थी हूँ उनकी इस बेइज्जती के लिए... ~शशि
हाँ ! यहाँ भी कुत्ते भौंकते हैं
हर समस्या पर चौंकते हैं,
साम्यवादी कुत्ते हैं
परम्परावादी कुत्ते हैं
अन्दर कि बात यही है
अवसरवादी कुत्ते हैं
इनमे भी सगोत्रीय की जंग है
यहाँ भी वर्णभेद का रंग है
कबीरा भी था कुतिया राम का
हम भी कुत्ते हैं आवाम का
हम भी समस्याओं पर चौंकते हैं
जी जान लगाकर एक सुर में भौंकते हैं
~शशि रंजन मिश्र (२३/०२/२०११)
सोमवार, 21 फ़रवरी 2011
लंगड़े कुत्ते का भाषण
मालिकों के मलाईदार जूठे को खाया है
भौंक-भौंक कर किया कपालभाति
कभी लेट कर किया वज्रासन
लंगड़े कुत्ते का भाषण
देश दुनिया घूम कर आया है
पश्चिम में पूरब ढूंढ कर आया है
साधू की तरह ज्ञानी हो गया
मांस भक्षण में भी गो ग्रासन
लंगड़े कुत्ते का भाषण
दो चार कुत्तों को चेला है बनाया
चौराहे पर भौंक जयकार मनाया
मुहल्ले की बिल्लियों को हड़काकर
मजबूत कर रहा अपना शासन
लंगड़े कुत्ते का भाषण
अपने लंगड़ेपन को खद्दर में छुपाया
सफ़ेद चोले में मन के कालेपन को छुपायागांधी-नेहरु की बातों का गुढ़ सार
चौपाल लगा सस्वर करता उच्चारण
लंगड़े कुत्ते का भाषण
प्रजातांत्रिक कुत्ता है,
साम्राज्यवादी हो गयादेशभक्त का चोला फेंक अवसरवादी हो गया
असंसदीय बातों को संसद में भौंक भौंक
दूसरे कुत्तों को सिखा रहा अनुशासन
लंगड़े कुत्ते का भाषण