
अन्वेषण स्वयं का
जैसे
अनंत शून्य में भटकना
क्या सत्य है मेरा ,
या कोई मिथ्या
अंतरद्वंद या छलावा
मैं बुद्ध नहीं
महावीर भी नहीं हूँ
जो संसार के कष्टों से भाग चलूँ |
नहीं बैठ सकता कंदराओं में ,
वृक्षों के नीचे
और करूँ अन्वेषण
सत्य का
कष्टों से मुक्ति का |
खुद को ही सहेजना
सुलझाने की जगह
जीवन के जटिलता का |
यह अपराध है
जो मैं नहीं कर सकता |
मैं बंद पड़ी गांठों
को खोलता हूँ
अपनी असमर्थ अँगुलियों से |
मेरा सत्य
यहीं बंद है |
मेरे अंतर के माया-जाल
की कुंजी यहीं बंधी है |
बस गांठें खोल लूँ |
मैं ब्रम्ह हूँ
आभास मुझे है
मैं स्वयं सृष्टी हूँ
फिर क्यूँ
ये अंतर्द्वंद
ये विचारों का मंथन ,
कुछ अनुतरित सा हो जाता हूँ |
जब कोई करता है
मेरा अन्वेषण |