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गुरुवार, 17 मार्च 2011

ये कैसा तांडव इस फाल्गुन में....

हे नटराज ! ये कैसा तांडव,

भंग के उमंग में

धरती डोली, सागर उफना

कुछ अलग तरंग में


चिलम कि तेरी आग बुझी तो

बडवानल बुला लिया

धूनी कि पड़ी राख कम तो

सारा शहर जला दिया


काम दमन करने वाले,

इस फाल्गुन में क्यूँ बौराये

कैलास का मंच क्या कम था

जो जापान में जा समाये


काल कूट को पीने वाले

क्या अब विष पचा ना पाए

क्या डगमगा गए तांडव में,

जो सुर ताल रचा ना पाए

~शशि(१७मार्च २०११)

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