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"मेरे अंतर का ज्वार, जब कुछ वेग से उफ़न पड़ता है,
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शनिवार, 2 अगस्त 2014

ज़ज्बात

फोटो साभार : wall.alphacoders.com/

मुझे मंज़िलों की खबर नहीं
उसे रास्तों का पता नहीं
क्या करें हम कोई गिला
किसी की ये खता नहीं

मैं हारी हूँ तो सिर्फ इसलिए
की कदम तो सबसे मिला लिया
दो कदम हम फिर साथ चले 
और कर अलविदा हाथों को हिला दिया
गुम हो गए फिर वो जज्बात
क़दमों के निशां का पता नहीं
मुझे मंज़िलों की खबर नहीं
उसे रास्तों का पता नहीं

हाथों को मिलाते थे अक्सर
कुछ यूँ ही गर्मजोशी से
फिर कह जाते थे हाले दिल
कुछ आँखों से, कुछ ख़ामोशी से
साँसों की महक जो गूंजा करती
मेरी साँसों में अब रता नहीं
मुझे मंज़िलों की खबर नहीं
उसे रास्तों का पता नहीं



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