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"मेरे अंतर का ज्वार, जब कुछ वेग से उफ़न पड़ता है,
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बुधवार, 18 नवंबर 2015

रात चाँद और मैं






मेरी खिड़की से 

झांकता चाँद , 

या बूढ़ी रात के हाथों में 


पड़ा कटोरा
नील महल के 

अंधियारे आले में दीया 
या सफ़ेद रेशम का 
जगमग डोरा



चाँदी जड़ी 


खनकती रोटी

ले हाथों में 


रात है रोती

हरी दूब पर 


उसके आंसू

चाँद धरा पर 


बिखर जाएगा

जैसे मखमल पर 


पारद और मोती


~ शशि (19 नवम्बर 2013)