चुनाव का त्योहार,
देश का बंटाधार |
वादों का ले पिटारा,
ईमोसनल अत्याचार |
आधारहीन जनतंत्र,
त्रिशंकु जनाधार |
झूठी कसमे झूठे वादे
और घोषणा निराधार |
उजला कपड़ा
तन से है जकड़ा ,
जिह्वा शहद
और नत मस्तक,
मन में छुपा
पैनी तलवार |
दल बदल
और खींचातानी
पैसा बहता
जैसे पानी|
देश की तबाही
पर रो रहे हैं,
सफ़ेदपोश
घड़ियाल |
रो रहे घड़ियाल,
जवाब देंहटाएंये जान के भी हम है अंजान,,,,
कब तक सहिष्णुता के आड़े अपनी कमज़ोरी च्छूपाते फिरेंगे...
अब समय है जब दे सही जनादेश, जो हो जान के लिए और देश के लिए...
वाह ! बहुत सही व्यंग्य किया है..हर शब्द वास्तविकता से परिपूर्ण है.
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