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"मेरे अंतर का ज्वार, जब कुछ वेग से उफ़न पड़ता है,
शोर जो मेरे उर में है,कागज पर बिखरने लगता है |"
ये अंतर्नाद मेरे विचारों की अभिव्यक्ति है, जिसे मैं यहाँ आपके समक्ष रख रहा हूँ |
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रविवार, 19 अप्रैल 2009

एक ग़ज़ल

एक कतरा समन्दर का मेरे नाम तो कर
जो मेरी पथरीली आंखों को नम कर दे |

देख बीमार है बस्ती और बीमार शहर
ला खुशी कहीं से इनमे जिन्दगी भर दे |

उड़ा ना ले जाए बवंडर कहीं परवाजों को
भर इन परों में जादू या हवा मद्धम कर दे |

मेरे अंधेरे घर में सिर्फ़ "
चाँद" है मयस्सर
आदत है अंधेरे की रौशनी शबनम कर दे |

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