कृष्ण ! क्या तुम फिर आओगे
अपने हाथों से तमस मिटाने
जग को फिर कर्मयोग सिखाने
कंस-दुर्योधन जीते इस जग में
उनका क्या समूल मिटाओगे
सबल नहीं है अबला नारी
पगपग पर है व्यभाचारी
दुशासन अट्टहास कर रहे
क्या तुम चीर बढाओगे
धृतराष्ट्र बैठा सिंहासन पर
व्यथित है अपने ही ऊपर
संजय भी अब दलबदलू
दिव्य चक्षु कैसे दिखाओगे
आज भी लड़ते पांडव-कौरव
धूल में मिला रहे निज गौरव
बृहन्नलला है अर्जुन अब तो
क्या तुम ही गांडीव उठाओगे
अच्छी कविता ...अंतिम पंक्तियाँ तो बहुत ही अच्छी लगीं.
जवाब देंहटाएंआपको और आपके परिवार को कृष्ण जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनाएँ
कृष्ण प्रेम मयी राधा
जवाब देंहटाएंराधा प्रेममयो हरी
♫ फ़लक पे झूम रही साँवली घटायें हैं
रंग मेरे गोविन्द का चुरा लाई हैं
रश्मियाँ श्याम के कुण्डल से जब निकलती हैं
गोया आकाश मे बिजलियाँ चमकती हैं
श्री कृष्ण जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनाये
bahut sundar likha hai.
जवाब देंहटाएंहे गिरिधर , गोवर्धन को तो उंगली पे उठा लिया....
जवाब देंहटाएंभ्रष्टाचार को कैसे हटाओगे....
व्यापते हो कन कन मे तुम...
क्या मेरे मन मे भी समाओगे