"मेरे अंतर का ज्वार, जब कुछ वेग से उफ़न पड़ता है, शोर जो मेरे उर में है,कागज पर बिखरने लगता है |" ये अंतर्नाद मेरे विचारों की अभिव्यक्ति है, जिसे मैं यहाँ आपके समक्ष रख रहा हूँ |
साहित्य के क्षेत्र में मेरा ये प्रारंभिक कदम है, अपने टिप्पणियों से मेरा मार्ग दर्शन करें |
सुजाता का खीर जो ना खाते सिद्धार्थ कहाँ बुद्ध बन पाते !
सहते मौसम का शीत और ताप रह जाते अपनी हड्डियाँगलाते कसकर टूट जाती वीणा की तार मध्यम मार्ग कहाँ बुझ पाते! सिद्धार्थ कहाँ बुद्ध बन पाते... था मार ने आकर घेर लिया नियति ने था मुंह मोड़ लिया तप के ताप में जलता जीवन मन की शीतलता कहाँ पाते ! सिद्धार्थ कहाँ बुद्ध बन पाते...
जो सत्य समाहित पायस में था जो लय लालायित उस मय में था झंकृत कर गया जो तार तार जीवन वीणा का स्वर क्या सुन पाते ! सिद्धार्थ कहाँ बुद्ध बन पाते...
(23जनवरी 1897 को जन्मे इस महान क्रांतिकारी और हमारे प्रिय नेताजी की जयंती पर, हमारे 775 सांसदों की नींद नहीं टूटी | धिक्कार है इन नेताओं पर जो देश के शीर्ष पर बैठ हमारे स्वतंत्रता सेनानियों का अपमान कर रहे हैं |